हरियाणा के चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU) के गेहूं एवं जौ अनुभाग ने दो पानी और मध्यम खाद में अधिक उपज देने वाली गेहूं की एक नई किस्म डब्ल्यूएच 1402 विकसित की है। यह किस्म भारत के उत्तर पश्चिमी मैदानी भाग के लिए उपयुक्त है, जिसमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर का मैदानी भाग आता है।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने बताया कि इस किस्म की दो पानी में ही औसत उपज 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और अधिकतम उपज 68 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक ली जा सकती है। यह किस्म पीला रतुआ, भुरा रतुआ और अन्य बीमारियों के प्रति रोगरोधी है। साथ ही यह किस्म कम पानी वाले जोन की अच्छी किस्म एनआईएडब्ल्यू 3170 से 7.5 प्रतिशत अधिक पैदावार देती है।

गेहूं एवं जौ अनुभाग के प्रभारी डॉ. पवन ने बताया कि यह किस्म रेतीली, कम उपजाऊ और कम पानी वाले क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर निकाली गई है। इस किस्म की बिजाई का उचित समय अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर के पहले सप्ताह है। बीज की मात्रा 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। इस किस्म को दो पानी जिसमें पहला पानी बीजाई के 20-25 दिन बाद शिखर जड़े निकलते समय और दूसरा पानी बीजाई के 80-85 दिन बाद बालियां निकलते समय देने की जरूरत है।

डॉ. पवन ने बताया कि इस किस्म की बालियां लंबी (14 सेंटीमीटर) और लाल रंग की हैं। इस किस्म की ऊंचाई 100 सेंटीमीटर है, जिससे इसके गिरने का खतरा न के बराबर है। इस किस्म का दाना मोटा है। इसमें 11.3 प्रतिशत प्रोटीन, हेक्टोलीटर वेट (77.7 केजी/एचएल) लोह तत्व (37.6 पीपीएम), जिंक (37.8 पीपीएम) है। अतः पौष्टिकता के हिसाब से यह किस्म अच्छी है।

इस नई किस्म को विकसित करने में गेहूं एवं जौ अनुभाग के डॉ. एम.एस. दलाल, ओपी बिश्नोई, विक्रम सिंह, दिव्या फोगाट, योगेन्द्र कुमार, एसके पाहुजा, सोमवीर, आरएस बेनीवाल, भगत सिंह, रेणु मुंजाल, प्रियंका, पूजा गुप्ता और पवन कुमार का अहम योगदान रहा है।

यह नई किस्म किसानों के लिए वरदान साबित होगी। यह किस्म कम पानी वाले क्षेत्रों में भी अधिक उपज देगी। इससे किसानों की आय में वृद्धि होगी और देश की खाद्य सुरक्षा मजबूत होगी।