हिसार के आदमपुर स्थित चूली बागड़ियान गांव की बेटियां फुटबॉल में अपनी प्रतिभा से गांव और देश का नाम रोशन कर रही हैं। आर्थिक तंगी और पड़ोसियों के तानों को पार कर इन बेटियों ने राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीता है।

इन बेटियों में ममता, किरण और रीनू शामिल हैं। ये तीनों जाट कॉलेज में पढ़ती हैं और कोच विनोद कुमार के मार्गदर्शन में फुटबॉल का प्रशिक्षण ले रही हैं।

ममता ने बताया कि जब उन्होंने फुटबॉल खेलना शुरू किया तो आसपास के लोग उन्हें मना करने लगे थे। उन्होंने कहा था कि बेटियों को बाहर नहीं भेजा जाना चाहिए। लेकिन ममता के माता-पिता ने उनके फैसले का साथ दिया। उन्होंने ममता को खेलने के लिए प्रेरित किया।

किरण ने बताया कि जब उन्होंने फुटबॉल शुरू किया तो उनके पास किट खरीदने के लिए भी पैसे नहीं थे। उन्होंने टी-शर्ट और साधारण जूते पहनकर प्रैक्टिस शुरू की। लेकिन पड़ोसियों के तानों ने उन्हें परेशान कर दिया। लेकिन किरण ने हार नहीं मानी और लगातार प्रैक्टिस करती रहीं।

रीनू ने बताया कि उन्होंने तीन बार नेशनल खेला है। जब उन्होंने फुटबॉल शुरू की तो काफी परेशानी आई। आर्थिक तंगी के कारण काफी समय तक स्कूल ड्रेस में ही प्रैक्टिस शुरू की। पहली बार कोच विनोद कुमार ने उन्हें खेल किट खरीदकर दी तो मैदान में जाना शुरू किया।

इन बेटियों के संघर्ष की कहानी प्रेरणादायक है। उन्होंने आर्थिक तंगी और पड़ोसियों के तानों को पार कर राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीता है। ये बेटियां देश के लिए एक उदाहरण हैं।

इन बेटियों के संघर्ष की कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अगर हम मेहनत और लगन से कुछ भी करना चाहें तो हमें सफलता जरूर मिलेगी।