बसपा का गठबंधन इतिहास

हरियाणा में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को गठबंधन की राजनीति में विशेष सफलता नहीं मिली है। साल 1998 के लोकसभा चुनाव में इनेलो (इंडियन नेशनल लोकदल) के साथ हुए गठबंधन को छोड़कर, बसपा के राज्य में किए गए सभी गठबंधन असफल रहे हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती का “हाथी” समय-समय पर बिदकता रहा, जिसका नुकसान बसपा और उसके गठबंधन दलों को उठाना पड़ा। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मायावती ने हरियाणा को कभी अपने राजनीतिक एजेंडे में प्राथमिकता नहीं दी।

पांचवीं बार गठबंधन की तैयारी

इस बार बसपा हरियाणा में पांचवीं बार गठबंधन करने जा रही है। राज्य में अक्टूबर में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए, बसपा और इनेलो का गठबंधन होने जा रहा है। 11 जुलाई को चंडीगढ़ में दोनों दलों के नेता संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में मिलकर चुनाव लड़ने की रूपरेखा तैयार करेंगे। इनेलो के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला ने नई दिल्ली में बसपा अध्यक्ष मायावती के साथ मुलाकात कर उन्हें हरियाणा में चुनावी गठबंधन के लिए तैयार कर लिया है। इससे पहले 2018 में भी दोनों दलों का गठबंधन हुआ था, जो कुछ समय बाद टूट गया था।

जाट और दलित वोट बैंक पर नजर

हरियाणा में जाटों की संख्या लगभग 22 प्रतिशत और दलितों की संख्या 21 प्रतिशत है। बसपा और इनेलो दोनों की नजर इन वोट बैंकों पर है। हालांकि, दलित और जाट किसी एक दल से बंधे नहीं हैं और सभी राजनीतिक दल उन पर अपना हक जताते हैं। इस बार के लोकसभा चुनाव में इनेलो को 1.74 प्रतिशत और बसपा को 1.28 प्रतिशत वोट मिले थे। स्वतंत्र रूप से इन दोनों दलों का अब राज्य में कोई मजबूत जनाधार नहीं रह गया है, इसलिए वे मिलकर भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ तीसरा मोर्चा खड़ा करने की योजना बना रहे हैं।

पूर्व गठबंधन

1998 में बसपा और इनेलो के गठबंधन के बाद अंबाला लोकसभा सीट से बसपा के अमन नागरा जीते थे। इसके बाद बसपा के उम्मीदवार विधानसभा चुनाव में कभी-कभी जीतते रहे हैं, लेकिन वे सभी हमेशा सत्ता पक्ष के पाले में बैठे दिखाई दिए। 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा और हजकां (कुलदीप बिश्नोई) के बीच गठबंधन हुआ था, लेकिन यह भी असफल रहा। मई 2018 के बाद इनेलो से हुआ गठबंधन भी ज्यादा दिन नहीं चला। 2019 में बसपा ने भाजपा के पूर्व सांसद राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के साथ गठबंधन किया, जो चुनाव के बाद टूट गया।

वर्तमान गठबंधन की उम्मीदें

अब देखने वाली बात यह होगी कि बसपा और इनेलो का यह नया गठबंधन हरियाणा की राजनीति में किस तरह का प्रभाव डालता है। दोनों दलों का उद्देश्य है कि वे मिलकर भाजपा और कांग्रेस के विरुद्ध एक मजबूत विकल्प पेश करें।