इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अयोध्या में निर्माणाधीन मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम पर रोक लगाने की मांग की गई है।

याचिका में प्राण प्रतिष्ठा को लेकर शंकराचार्यों द्वारा उठाई गई आपत्तियों का हवाला देते हुए इसे सनातन परंपरा के खिलाफ बताया गया है।

याचिका में कहा गया है कि प्राण प्रतिष्ठा के लिए पूस महीने का चयन गलत है क्योंकि यह महीना धार्मिक आयोजनों के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। इसके अलावा, मंदिर अभी निर्माणाधीन है और अपूर्ण मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो सकती है।

याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इस कार्यक्रम में शामिल होना संविधान के खिलाफ है क्योंकि यह देश की धर्मनिरपेक्षता की भावना के खिलाफ है।

याचिकाकर्ता अधिवक्ता अनिल कुमार बिंद ने बताया कि याचिका मंगलवार को दाखिल हो गई है और जल्द ही इस पर सुनवाई की मांग की जाएगी।

इससे पहले, उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव की ओर से जारी उस शासनादेश को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया था, जिसमें 22 जनवरी 2024 को प्रदेश के सभी मंदिरों में भजन-कीर्तन करने, रामचरित मानस का पाठ करने, सभी शहरों में रथ/कलश यात्रा निकालने का शासनादेश जारी किया गया था।

याचिका में मुख्य सचिव के शासनादेश को भारतीय संविधान के धर्म निरपेक्ष चरित्र व अनुच्छेद 25, 26 और 27 के खिलाफ माना है। कहा है कि इसके अनुसार राज्य को किसी भी धार्मिक गतिविधि, आयोजन से निरपेक्ष रहने की अपेक्षा संविधान में की गई है।

यह याचिका ऑल इंडिया लाॅयर्स यूनियन (एआईएलयू), उत्तर प्रदेश के राज्य अध्यक्ष अधिवक्ता नरोत्तम शुक्ल की ओर से दाखिल की गई थी।

इस याचिका पर कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता के समक्ष सुनवाई के लिए प्रार्थना की गई थी, लेकिन कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति की कोर्ट ने इसे अर्जेंट (अति आवश्यक) नहीं मानते हुए सुनवाई से इन्कार कर दिया।

इस मामले की सुनवाई अब सूचीबद्ध होने पर ही होगी।

यह जनहित याचिका देश में धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे को लेकर एक अहम मुद्दा बन गई है।