इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को 8 हिंदू-मुस्लिम जोड़ों को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ये शादियां उत्तर प्रदेश धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम के तहत अवैध हैं।
इन जोड़ों में से 5 मुस्लिम युवकों ने हिंदू महिलाओं से और 3 हिंदू युवकों ने मुस्लिम महिलाओं से शादी की थी। इन सभी जोड़ों ने कोर्ट में याचिका दायर कर परिवार से अपनी जान को खतरा बताया था और सुरक्षा की मांग की थी।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इन जोड़ों ने शादी से पहले धर्म परिवर्तन की कानूनी प्रक्रिया नहीं अपनाई है। इसलिए, ये शादियां उत्तर प्रदेश धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम के तहत अवैध हैं।
कोर्ट ने कहा कि अगर ये जोड़े कानूनी प्रक्रिया का पालन करने के बाद विवाह करते हैं, तो वे नए सिरे से सुरक्षा की मांग कर सकते हैं।
धर्मांतरण विरोधी कानून क्या है?
2021 का धर्मांतरण विरोधी कानून धर्मांतरण पर रोक लगाता है। उत्तर प्रदेश में अंतर-धार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों को शादी से 2 महीने पहले जिला मजिस्ट्रेट को सूचना देनी होती है।
कानून के मुताबिक, अगर कोई अपनी मर्जी से दूसरे धर्म को अपनाता है, तो यह अपराध नहीं है, लेकिन यदि किसी को लालच देकर या ब्लैकमेल करके धर्मांतरण करवाया जाता है, तो यह क्राइम है।
जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर न्यूनतम 15 हजार का जुर्माना और 1 से 5 साल तक की सजा का प्रावधान है।
सुप्रीम कोर्ट ने जबरन धर्मांतरण को राष्ट्रव्यापी समस्या बताया था
9 जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जबरन धर्मांतरण एक राष्ट्रव्यापी समस्या है, जिससे तत्काल निपटने की जरूरत है। नागरिकों को होने वाली चोट बहुत बड़ी है, क्योंकि एक भी जिला ऐसा नहीं है जो ‘हुक और बदमाश’ द्वारा धर्म परिवर्तन से मुक्त हो।