आज के इस कलियुग दौर में केवल ‘राम नाम’ लेना ही आपका उद्धार कर सकता है। कई लोग अभिवादन में ‘जय श्री राम’ अथवा ‘जय सियाराम’ कहते हैं। कई लोग ‘सियावर रामचंद्र की जय’ का उदघोष भी करते हैं। लेकिन आजकल कई लोग इस बात की सलाह भी दे रहे को आप जय श्री राम कहने के बजाय जय सिया राम कहें। आखिर ऐसी सलाह देने के पीछे उनका तर्क क्या है और जय श्री राम अथवा जय सिया राम में ‘श्री’ और ‘सिया’ का फर्क क्या है, चलिए जानते हैं।

जैसे शिव भक्त काशी नगरी में ‘महादेव’ और उज्जैन में ‘जय महाकाल’ कहकर और कृष्ण भक्त ‘हरे कृष्णा’ कहकर एक दूसरे को संबोधित करते है। राम नाम का पुण्य कमाने के लिए लोग अरसे से नमस्ते या गुड मार्निंग की जगह ‘जय सिया राम’ या फिर ‘राम-राम’ कहते चले आ रहे है।

‘जय श्री राम’ और ‘जय सिया राम’ इनमें से कौन सही

भगवान राम के जयकारे और संबोधन को लेकर सवाल उठा कि ‘जय श्री राम’ और ‘जय सिया राम’ इनमें से कौन सही या फिर कौन गलत है। कौन सा संबोधन अपूर्ण और कौन सा संपूर्ण है। ‘जय श्री राम’ के नारे को कमतर और जय सियाराम को बेहतर बताने वालों ने तर्क दिया कि उनके नारे में भगवान राम के साथ माता सीता भी शामिल हैं जबकि ‘जय श्री राम’ में प्रभु राम अकेले हैं। उनका तर्क था कि ‘जय सियाराम’ में भगवान राम के साथ माता सीता के जय की कामना भी समाहित है।

जानें श्री शब्द का अर्थ

अयोध्या स्थित रामजन्मभूमि मंदिर के पुजारी महंत सत्येंद्र दास कहते हैं कि कोई भी दल भगवान के जयकारे का अपने तरीके से कोई भी मतलब निकाल ले लेकिन ‘जय श्री राम’ में ‘जय’ का अर्थ विजय, ‘श्री’ का अर्थ यश और माता सीता है और ‘राम’ का अर्थ होता है अनंत। इसमें ‘श्री का अर्थ ‘श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च’ यानि भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी या फिर कहें भगवान राम की पत्नी सीता हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार भगवती लक्ष्मी और माता सीता में कोई अंतर नहीं है, बल्कि उन्हीं का स्वरूप हैं।

नाम के साथ क्यों लगाया जाता है श्री

श्री शब्द का अर्थ यश, लक्ष्मी, कांति, शक्ति होता है। सनातन परंपरा में किसी भी देवी या देवता या फिर व्यक्ति विशेष के नाम के आगे ‘श्री’ शब्द का प्रयोग किया जाता है, जिसके पीछे उसका आदर, सम्मान, महिमा का गुणगान का भाव निहित है. ‘श्री’ शब्द स्त्रीवाची है और सनातन पंरपरा में पुरूषों से पहले स्त्री को ही स्थान दिया गया है।

. यही कारण है कि ‘जय सिया राम’, ‘जय श्री राम’ , ‘सियावर राम चंद्र की जय’, ‘पार्वतीपतये नमः’, ‘उमामहेश्वराभ्यां नम:’, कहा जाता है. श्री के साथ भगवान विष्णु के रहने के कारण ही उन्हें श्रीमान या श्रीपति कहा जाता है।